कहानी संग्रह >> कोई अच्छा सा लड़का कोई अच्छा सा लड़काविक्रम सेठ
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प्रेम, महत्त्वाकांक्षा, हर्ष-शोक, पूर्वाग्रह और सामंजस्य से भरा हुआ उपन्यास....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दुनिया-भर में चर्चित यह उपन्यास लता नामक एक लड़की से लिए
उसकी माँ श्रीमती रूपा मेहरा द्वारा कोई अच्छा-सा लड़का ढूँढने की कोशिशों
की अद्भुत कहानी है। साथ ही यह कहानी उस भारत की भी है, जो नया-नया
स्वाधीन हुआ था और एक भयानक संकट-काल से जूझ रहा था। एक ऐसे काल से जब
जमींदारों के भाग्य का सितारा डूब रहा था, संगीतकारों और दरबारियों को
संरक्षण नहीं मिल रहा था, देहातों में अकाल के हालात पैदा होनेवाले थे, और
जब पहले आम चुनाव से राजनीतिक ताकतों का ढाँचा बदलनेवाले था।
केंद्र मे चार बड़े और विस्तृत परिवार हैं : मेहरा परिवार (खासकर लता और उसकी माँ); कपूर परिवार (जिसमें एक शक्तिशाली स्थानीय नेता और उसका आकर्षक, किन्तु लम्पट पुत्र शामिल है। यह पुत्र अत्यंत मोहक गायिका सईदाबाई फ़िरोजाबादी के इश़्क में मुब्तिला होता है); चटर्जी परिवार (कलकत्ता उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश श्री चटर्जी से लेकर उनके कवि पुत्र और चंचल पुत्रियों तक), और ख़ान परिवार (वह नवाबी ख़ानदान, जिसे सम्पत्ति के हाथ से निकल जाने का ख़तरा है)।
महत्त्वाकांक्षा, हर्ष और शोक, पूर्वग्रह और सामंजस्य, संवेदनशील, सामाजिक आचरण और भयंकर साम्प्रदायिक हिंसा को वर्णित-व्याख्यायित करता हुआ यह उपन्यास किसी विशाल मेले-सरीखा है। संक्षेप में कहें तो यह एक ऐसी उत्कृष्ट और आधुनिक कथाकृति है, जो हमें उन्नीसवीं सदी में लिखे गए क्लासिकी उपन्यासों की याद दिलाती है, और अपने कथा समय की परीक्षा में निश्चय ही खरी उतरनेवाली है।
संस्करण के शीर्षक का सुझाव श्रीमती नसरीन मुन्नी कबीर ने दिया है। हम उनके शुक्रगुज़ार हैं।
केंद्र मे चार बड़े और विस्तृत परिवार हैं : मेहरा परिवार (खासकर लता और उसकी माँ); कपूर परिवार (जिसमें एक शक्तिशाली स्थानीय नेता और उसका आकर्षक, किन्तु लम्पट पुत्र शामिल है। यह पुत्र अत्यंत मोहक गायिका सईदाबाई फ़िरोजाबादी के इश़्क में मुब्तिला होता है); चटर्जी परिवार (कलकत्ता उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश श्री चटर्जी से लेकर उनके कवि पुत्र और चंचल पुत्रियों तक), और ख़ान परिवार (वह नवाबी ख़ानदान, जिसे सम्पत्ति के हाथ से निकल जाने का ख़तरा है)।
महत्त्वाकांक्षा, हर्ष और शोक, पूर्वग्रह और सामंजस्य, संवेदनशील, सामाजिक आचरण और भयंकर साम्प्रदायिक हिंसा को वर्णित-व्याख्यायित करता हुआ यह उपन्यास किसी विशाल मेले-सरीखा है। संक्षेप में कहें तो यह एक ऐसी उत्कृष्ट और आधुनिक कथाकृति है, जो हमें उन्नीसवीं सदी में लिखे गए क्लासिकी उपन्यासों की याद दिलाती है, और अपने कथा समय की परीक्षा में निश्चय ही खरी उतरनेवाली है।
संस्करण के शीर्षक का सुझाव श्रीमती नसरीन मुन्नी कबीर ने दिया है। हम उनके शुक्रगुज़ार हैं।
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